एक दोपहर गुरु नानक देव और उनके शिष्य पटना में गंगा नदी के तट पर आराम कर रहे थे । मर्दाना ने एक पत्थर सड़क के किनारे से उठाया और गुरु नानक देव जी का उपदेश सुनने आई भीड़ को देखते हुए गुरुनानक देव जी से कहा, "आप हर व्यक्ति को मुक्ति पाने का तरीका सिखाते हैं। लेकिन उनमे से बहुत से लोग अभी भी दुनियादारी और बाहरी कर्मकांडों में फसकर अपना बहुमूल्य समय खर्च कर रहे है| वे अपना ये समय क्यों बर्बाद कर रहे है?"
गुरु नानक देव जी ने कहा, "अधिकांश लोगों को अपने जीवन के मूल्य की पहचान नहीं है, यद्यपि मानव जीवन इस धरती पर सबसे प्रिय खजाना है।"
"लेकिन हर कोई अपने जीवन का मूल्य देख सकता हैं|" मर्दाने ने कहा।
गुरुनानक देव जी ने कहा, "नहीं, हर आदमी अपनी सोच के अनुसार चीजों पर अपने ही महत्व देता है। हर आदमी अपनी अलग सोच के साथ हर चीज़ को अलग महत्त्व देता है| अभी तुमने जो पत्थर गंदगी से उठाया है, इस बात का एक अच्छा उदाहरण है| इस पत्थर को बाजार ले जाओ, और देखो कि तुम्हे इससे क्या मिलता है।"
हैरान, मर्दाना बाजार उस पत्थर को बाज़ार ले गया और एक मिठाई की दुकान पर दुकानदार को कहा, की इस पत्थर के बदले क्या मिलेगा| वो दुकानदार हंसा और बोला, "चले जाओ, तुम मेरा समय बर्बाद कर रहे हैं।"
मर्दाना ने सोचा कि आगे एक किराने की दुकान पर कोशिश करता हूँ| किरनेवाले ने कहा, "मैं तुम्हे यहाँ से बाहर निकलने के लिए एक प्याज दे सकता हूँ|"
इस तरह मर्दाना ने कई और दुकानों पर कोशिश की। अंत में वह सालिस राज, जौहरी की दुकान पर आया। सालिस राज की आँखें फटी की फटी रह गयी जब उसने वह पत्थर को देखा।
"मैं माफी चाहता हूँ," उन्होंने कहा, "इस मणि को खरीदने के लिए मेरे पास पर्याप्त पैसा नहीं है। लेकिन अगर आप मुझे इसे कुछ और समय तक देखने दोगे तो मैं आपको एक सौ रुपए दूँगा|"
मर्दाना वापस गुरु नानक देव जी के पास आया और सारी बातें विस्तार से बताई|
गुरु नानक देव जी ने कहा, "देखो, कैसे एक बहुमूल्य रत्न को एक बेकार पत्थर समझ रहे थे| अगर उस जोहारी के बताने के पहले तुम्हे इस रत्न की कीमत का अंदाज़ा हो जाता, तो ज़रूर तुम दूसरे लोगो को पागल कहते, जो इसका मूल्य नही समझ पाए| इस तरह मानव जीवन भी एक गहना है और संत-महात्मा को इसकी कीमत पता है| वे चाहते है कि हमें भी इस मनुष्य जीवन की कीमत पता चले और हम सब भी इसका लाभ उठाकर परमात्मा की प्राप्ति कर सके| लेकिन हर कोई इस जीवन की कीमत नहीं आंक सकता|
गुरु नानक देव जी ने कहा, "अधिकांश लोगों को अपने जीवन के मूल्य की पहचान नहीं है, यद्यपि मानव जीवन इस धरती पर सबसे प्रिय खजाना है।"
"लेकिन हर कोई अपने जीवन का मूल्य देख सकता हैं|" मर्दाने ने कहा।
गुरुनानक देव जी ने कहा, "नहीं, हर आदमी अपनी सोच के अनुसार चीजों पर अपने ही महत्व देता है। हर आदमी अपनी अलग सोच के साथ हर चीज़ को अलग महत्त्व देता है| अभी तुमने जो पत्थर गंदगी से उठाया है, इस बात का एक अच्छा उदाहरण है| इस पत्थर को बाजार ले जाओ, और देखो कि तुम्हे इससे क्या मिलता है।"
हैरान, मर्दाना बाजार उस पत्थर को बाज़ार ले गया और एक मिठाई की दुकान पर दुकानदार को कहा, की इस पत्थर के बदले क्या मिलेगा| वो दुकानदार हंसा और बोला, "चले जाओ, तुम मेरा समय बर्बाद कर रहे हैं।"
मर्दाना ने सोचा कि आगे एक किराने की दुकान पर कोशिश करता हूँ| किरनेवाले ने कहा, "मैं तुम्हे यहाँ से बाहर निकलने के लिए एक प्याज दे सकता हूँ|"
इस तरह मर्दाना ने कई और दुकानों पर कोशिश की। अंत में वह सालिस राज, जौहरी की दुकान पर आया। सालिस राज की आँखें फटी की फटी रह गयी जब उसने वह पत्थर को देखा।
"मैं माफी चाहता हूँ," उन्होंने कहा, "इस मणि को खरीदने के लिए मेरे पास पर्याप्त पैसा नहीं है। लेकिन अगर आप मुझे इसे कुछ और समय तक देखने दोगे तो मैं आपको एक सौ रुपए दूँगा|"
मर्दाना वापस गुरु नानक देव जी के पास आया और सारी बातें विस्तार से बताई|
गुरु नानक देव जी ने कहा, "देखो, कैसे एक बहुमूल्य रत्न को एक बेकार पत्थर समझ रहे थे| अगर उस जोहारी के बताने के पहले तुम्हे इस रत्न की कीमत का अंदाज़ा हो जाता, तो ज़रूर तुम दूसरे लोगो को पागल कहते, जो इसका मूल्य नही समझ पाए| इस तरह मानव जीवन भी एक गहना है और संत-महात्मा को इसकी कीमत पता है| वे चाहते है कि हमें भी इस मनुष्य जीवन की कीमत पता चले और हम सब भी इसका लाभ उठाकर परमात्मा की प्राप्ति कर सके| लेकिन हर कोई इस जीवन की कीमत नहीं आंक सकता|
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