एक बार सिकंदर बादशाह अपनी फ़ौज़ के साथ एक नदी पार कर रहा था| वहाँ उसने एक साधु को नंगे शरीर भगवान का सिमरन करते हुए देखा| बादशाह सिकंदर उस साधु के पास गया और पूछा कि बजाये ज़िंदगी को शांति और आराम से बिताने के; वह क्यों अपना समय मूर्खों की तरह बर्बाद कर रहा है| इस पर साधु ने सिकंदर से उल्टा सवाल पूछ लिया कि तुम क्या कर रहे हो?
सिकंदर ने कहा मुझे और मेरी फ़ौज़ को नदी पार करके जाना है|
"फिर"
"फिर, उस पार के बादशाह को जंग में हराना है|"
"फिर"
"उसके राज्य का सारा ख़ज़ाना लूटकर अपने मुल्क ले जाना है|"
"फिर, क्या करोगे?"
"सारी दुनिया का ख़ज़ाना लूटकर अपने मुल्क ले जाना है|"
"फिर, क्या करोगे?"
सिकंदर ने कहा फिर आराम से ज़िंदगी गुज़ारुँगा|
साधु ने मुस्कुराते हुए कहा कि मैं अभी क्या कर रहा हूँ? तुम इतना सब कुछ करके शांति की ज़िंदगी गुज़ारने का सोच रहे हो, मैं तो बिना कोई लूट-पाट के चैन का जीवन यापन कर रहा हूँ| अब बताओ मूर्ख कौन है और बुद्धिमान कौन है?
सिकंदर बादशाह के पास कोई जवाब ना था|
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